श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 58: मार्ग में अनेक प्रकार की आशङ् का करते हुए लक्ष्मण सहित श्रीराम का आश्रम में आना और वहाँ सीता को न पाकर व्यथित होना  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  3.58.10 
 
 
यदि मामाश्रमगतं वैदेही नाभिभाषते।
पुर: प्रहसिता सीता विनशिष्यामि लक्ष्मण॥ १०॥
 
 
अनुवाद
 
  लक्ष्मण! यदि विदेह नरेश की राजकुमारी सीता आश्रम में जाकर मुझसे हँसते हुए मुँह से बात नहीं करेंगी तो मैं जीवित नहीं रहूँगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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