श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 58: मार्ग में अनेक प्रकार की आशङ् का करते हुए लक्ष्मण सहित श्रीराम का आश्रम में आना और वहाँ सीता को न पाकर व्यथित होना  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  3.58.1 
 
 
स दृष्ट्वा लक्ष्मणं दीनं शून्यं दशरथात्मज:।
पर्यपृच्छत धर्मात्मा वैदेहीमागतं विना॥ १॥
 
 
अनुवाद
 
  दशरथ जी के पुत्र श्री राम ने लक्ष्मण को उदास और सीता जी को साथ में न देखकर उनसे पूछा-।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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