श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 57: श्रीराम का लौटना, मार्ग में अपशकुन देखकर चिन्तित होना तथा लक्ष्मण से सीता पर सङ्कट आने की आशङ्का करना  »  श्लोक 7-8
 
 
श्लोक  3.57.7-8 
 
 
राक्षसै: सहितैर्नूनं सीताया ईप्सितो वध:।
काञ्चनश्च मृगो भूत्वा व्यपनीयाश्रमात्तु माम्॥ ७॥
दूरं नीत्वाथ मारीचो राक्षसोऽभूच्छराहत:।
हा लक्ष्मण हतोऽस्मीति यद्वाक्यं व्याजहार ह॥ ८॥
 
 
अनुवाद
 
  राक्षस लोग सीता का वध करना चाहते थे। यही इस काण्ड में छिपा उद्देश्य था। इसलिए ही सोने का मृग बनकर मारीच राक्षस मुझे आश्रम से दूर ले गया था। फिर जब मैंने उस पर बाण चलाया, तो वो चिल्लाया "हा लक्ष्मण! मैं मारा गया।" यह सब उसकी चाल थी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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