वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 3: अरण्य काण्ड
»
सर्ग 57: श्रीराम का लौटना, मार्ग में अपशकुन देखकर चिन्तित होना तथा लक्ष्मण से सीता पर सङ्कट आने की आशङ्का करना
»
श्लोक 7-8
श्लोक
3.57.7-8
राक्षसै: सहितैर्नूनं सीताया ईप्सितो वध:।
काञ्चनश्च मृगो भूत्वा व्यपनीयाश्रमात्तु माम्॥ ७॥
दूरं नीत्वाथ मारीचो राक्षसोऽभूच्छराहत:।
हा लक्ष्मण हतोऽस्मीति यद्वाक्यं व्याजहार ह॥ ८॥
अनुवाद
play_arrowpause
राक्षस लोग सीता का वध करना चाहते थे। यही इस काण्ड में छिपा उद्देश्य था। इसलिए ही सोने का मृग बनकर मारीच राक्षस मुझे आश्रम से दूर ले गया था। फिर जब मैंने उस पर बाण चलाया, तो वो चिल्लाया "हा लक्ष्मण! मैं मारा गया।" यह सब उसकी चाल थी।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.