श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 57: श्रीराम का लौटना, मार्ग में अपशकुन देखकर चिन्तित होना तथा लक्ष्मण से सीता पर सङ्कट आने की आशङ्का करना  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  3.57.5 
 
 
मारीचेन तु विज्ञाय स्वरमालक्ष्य मामकम्।
विक्रुष्टं मृगरूपेण लक्ष्मण: शृणुयाद् यदि॥ ५॥
 
 
अनुवाद
 
  मारीच जानता था कि लक्ष्मण मेरी आवाज पहचान लेगा। इसलिए उसने जानबूझकर मेरे स्वर में पुकार लगाई ताकि लक्ष्मण उसे सुनकर मेरे पास आ जाए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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