श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 57: श्रीराम का लौटना, मार्ग में अपशकुन देखकर चिन्तित होना तथा लक्ष्मण से सीता पर सङ्कट आने की आशङ्का करना  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  3.57.4 
 
 
अशुभं बत मन्येऽहं गोमायुर्वाश्यते यथा।
स्वस्ति स्यादपि वैदेह्या राक्षसैर्भक्षणं विना॥ ४॥
 
 
अनुवाद
 
  इस सियारिन जैसी बोली को सुनकर मुझे लग रहा है कि कोई अशुभ घटना घटित हुई है। क्या विदेह नन्दिनी सीता कुशलपूर्वक हैं? कहीं उन्हें राक्षस तो नहीं खा गए?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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