श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 57: श्रीराम का लौटना, मार्ग में अपशकुन देखकर चिन्तित होना तथा लक्ष्मण से सीता पर सङ्कट आने की आशङ्का करना  »  श्लोक 23
 
 
श्लोक  3.57.23 
 
 
मनश्च मे दीनमिहाप्रहृष्टं
चक्षुश्च सव्यं कुरुते विकारम्।
असंशयं लक्ष्मण नास्ति सीता
हृता मृता वा पथि वर्तते वा॥ २३॥
 
 
अनुवाद
 
  लक्ष्मण! इसलिए मेरा मन बहुत दुखी और व्याकुल हो रहा है। मेरी बायीं आँख फड़क रही है, जिससे यह लगता है कि निश्चित रूप से आश्रम में सीता नहीं है। उसे कोई ले गया होगा, या वह मर गई होगी या फिर (किसी राक्षस के साथ) रास्ते में होगी।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽरण्यकाण्डे सप्तपञ्चाश: सर्ग: ॥ ५ ७॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अरण्यकाण्डमें सत्तावनवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ ५ ७॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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