श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 57: श्रीराम का लौटना, मार्ग में अपशकुन देखकर चिन्तित होना तथा लक्ष्मण से सीता पर सङ्कट आने की आशङ्का करना  »  श्लोक 22
 
 
श्लोक  3.57.22 
 
 
इदं हि रक्षो मृगसंनिकाशं
प्रलोभ्य मां दूरमनुप्रयातम्।
हतं कथंचिन्महता श्रमेण
स राक्षसोऽभून्म्रियमाण एव॥ २२॥
 
 
अनुवाद
 
  यह राक्षस एक हिरण का रूप धारण करके मुझे बहला-फुसलाकर दूर ले आया। मैंने बड़ी मुश्किल से इसे मार डाला, लेकिन मरते ही यह फिर से राक्षस हो गया।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.