श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 57: श्रीराम का लौटना, मार्ग में अपशकुन देखकर चिन्तित होना तथा लक्ष्मण से सीता पर सङ्कट आने की आशङ्का करना  »  श्लोक 21
 
 
श्लोक  3.57.21 
 
 
यथा वै मृगसंघाश्च गोमायुश्चैव भैरवम्।
वाश्यन्ते शकुनाश्चापि प्रदीप्तामभितो दिशम्।
अपि स्वस्ति भवेत् तस्या राजपुत्र्या महाबल॥ २१॥
 
 
अनुवाद
 
  महाबली लक्ष्मण! ये मृगों के झुंड (दाहिनी ओर से आकर) अमंगल का संकेत दे रहे हैं, गीदड़ जिस तरह से भयंकर आवाज कर रहे हैं और चारों दिशाएँ जलती हुई प्रतीत हो रही हैं, इन सबसे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि राजकुमारी सीता शायद ही कुशल से हों।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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