श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 57: श्रीराम का लौटना, मार्ग में अपशकुन देखकर चिन्तित होना तथा लक्ष्मण से सीता पर सङ्कट आने की आशङ्का करना  »  श्लोक 19-20
 
 
श्लोक  3.57.19-20 
 
 
अशुभान्येव भूयिष्ठं यथा प्रादुर्भवन्ति मे॥ १९॥
अपि लक्ष्मण सीताया: सामग्रॺं प्राप्नुयामहे।
जीवन्त्या: पुरुषव्याघ्र सुताया जनकस्य वै॥ २०॥
 
 
अनुवाद
 
  क्योंकि मेरे आस-पास बहुत-से अपशकुन हो रहे हैं। हे पुरुषसिंह लक्ष्मण! बताओ कि क्या हम सीता को जीवित और पूर्णतः स्वस्थ पा सकेंगे जो जनक की पुत्री हैं?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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