श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 57: श्रीराम का लौटना, मार्ग में अपशकुन देखकर चिन्तित होना तथा लक्ष्मण से सीता पर सङ्कट आने की आशङ्का करना  »  श्लोक 17-18h
 
 
श्लोक  3.57.17-18h 
 
 
अहो लक्ष्मण गर्ह्यं ते कृतं यत् त्वं विहाय ताम्॥ १७॥
सीतामिहागत: सौम्य कच्चित् स्वस्ति भवेदिति।
 
 
अनुवाद
 
  अरे सौम्य लक्ष्मण! सीता को अकेला छोड़कर तुमने जो किया बहुत ही बुरा किया। सीता वहाँ सुरक्षित होगी, ऐसा निश्चित नहीं है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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