श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 57: श्रीराम का लौटना, मार्ग में अपशकुन देखकर चिन्तित होना तथा लक्ष्मण से सीता पर सङ्कट आने की आशङ्का करना  »  श्लोक 16-17h
 
 
श्लोक  3.57.16-17h 
 
 
गृहीत्वा च करं सव्यं लक्ष्मणं रघुनन्दन:॥ १६॥
उवाच मधुरोदर्कमिदं परुषमार्तवत्।
 
 
अनुवाद
 
  रघुनन्दन लक्ष्मण का बायाँ हाथ पकड़कर विचलित हो गए और पहले कठोर स्वर में और अंत में मधुर स्वर में इस प्रकार बोले-
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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