श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 57: श्रीराम का लौटना, मार्ग में अपशकुन देखकर चिन्तित होना तथा लक्ष्मण से सीता पर सङ्कट आने की आशङ्का करना  »  श्लोक 15-16h
 
 
श्लोक  3.57.15-16h 
 
 
विषण्ण: सन् विषण्णेन दु:खितो दु:खभागिना।
स जगर्हेऽथ तं भ्राता दृष्ट्वा लक्ष्मणमागतम्॥ १५॥
विहाय सीतां विजने वने राक्षससेविते।
 
 
अनुवाद
 
  विषाद से भरे हुए लक्ष्मण दुःखी और विषादग्रस्त श्रीराम से मिले। तब राक्षसों द्वारा सेवित निर्जन वन में सीता को अकेली छोड़कर आए हुए लक्ष्मण को देखकर उनके भाई श्रीराम ने उन्हें डांटा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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