श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 57: श्रीराम का लौटना, मार्ग में अपशकुन देखकर चिन्तित होना तथा लक्ष्मण से सीता पर सङ्कट आने की आशङ्का करना  »  श्लोक 12-13h
 
 
श्लोक  3.57.12-13h 
 
 
तं दीनमानसं दीनमासेदुर्मृगपक्षिण:॥ १२॥
सव्यं कृत्वा महात्मानं घोरांश्च ससृजु: स्वरान्।
 
 
अनुवाद
 
  उनका मन बहुत दुःखी था। वे दीन हो रहे थे। उसी अवस्था में वन के मृग और पक्षी उन्हें बाईं ओर रखते हुए उनके पास आये और भयानक स्वर में अपनी बोली बोलने लगे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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