श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 57: श्रीराम का लौटना, मार्ग में अपशकुन देखकर चिन्तित होना तथा लक्ष्मण से सीता पर सङ्कट आने की आशङ्का करना  »  श्लोक 11-12h
 
 
श्लोक  3.57.11-12h 
 
 
आत्मनश्चापनयनं मृगरूपेण रक्षसा॥ ११॥
आजगाम जनस्थानं राघव: परिशङ्कित:।
 
 
अनुवाद
 
  राक्षस द्वारा मृग का रूप धारण करके श्रीरघुनाथजी को आश्रम से दूर ले जाने के घटित होने पर विचार करते हुए, श्रीरघुनाथजी चिंतित हृदय से जनस्थान को आये।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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