श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 57: श्रीराम का लौटना, मार्ग में अपशकुन देखकर चिन्तित होना तथा लक्ष्मण से सीता पर सङ्कट आने की आशङ्का करना  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  3.57.1 
 
 
राक्षसं मृगरूपेण चरन्तं कामरूपिणम्।
निहत्य रामो मारीचं तूर्णं पथि न्यवर्तत॥ १॥
 
 
अनुवाद
 
  श्रीरामचन्द्रजी ने आश्रम का मार्ग छोड़कर मृगरूप वाले राक्षस मारीच का वध किया और तुरंत ही आश्रम की ओर लौट आए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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