श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 56: सीता का श्रीराम के प्रति अपना अनन्य अनुराग दिखाकर रावण को फटकारना तथा रावण की आज्ञा से राक्षसियों का उन्हें अशोकवाटिका में ले जाकर डराना  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  3.56.5 
 
 
प्रत्यक्षं यद्यहं तस्य त्वया वै धर्षिता बलात्।
शयिता त्वं हत: संख्ये जनस्थाने यथा खर:॥ ५॥
 
 
अनुवाद
 
  ‘यदि तू उनके सामने बलपूर्वक मेरा अपहरण करता तो अपने भाई खरकी तरह जनस्थानके युद्धस्थलमें ही मारा जाकर सदाके लिये सो जाता॥ ५॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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