न विन्दते तत्र तु शर्म मैथिली
विरूपनेत्राभिरतीव तर्जिता।
पतिं स्मरन्ती दयितं च देवरं
विचेतनाभूद् भयशोकपीडिता॥ ३६॥
अनुवाद
विरूप चेहरे और आंखों वाली राक्षसियों की कठोर डांट-फटकार के कारण मिथिलेश कुमारी सीता को वहां शांति नहीं मिलती। वह डर और शोक से पीड़ित हो प्रिय पति और देवर को याद करते हुए बेहोश हो जाती हैं।
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽरण्यकाण्डे षट्पञ्चाश: सर्ग: ॥ ५ ६॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अरण्यकाण्डमें छप्पनवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ ५ ६॥