श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 56: सीता का श्रीराम के प्रति अपना अनन्य अनुराग दिखाकर रावण को फटकारना तथा रावण की आज्ञा से राक्षसियों का उन्हें अशोकवाटिका में ले जाकर डराना  »  श्लोक 35
 
 
श्लोक  3.56.35 
 
 
शोकेन महता ग्रस्ता मैथिली जनकात्मजा।
न शर्म लभते भीरु: पाशबद्धा मृगी यथा॥ ३५॥
 
 
अनुवाद
 
  मैथिली जनक की पुत्री सीता शोक से अत्यधिक व्यथित होकर जाल में फंसी हुई हिरणी की तरह भयभीत थीं और उन्हें एक पल के लिए भी चैन नहीं मिलता था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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