श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 56: सीता का श्रीराम के प्रति अपना अनन्य अनुराग दिखाकर रावण को फटकारना तथा रावण की आज्ञा से राक्षसियों का उन्हें अशोकवाटिका में ले जाकर डराना  »  श्लोक 34
 
 
श्लोक  3.56.34 
 
 
सा तु शोकपरीताङ्गी मैथिली जनकात्मजा।
राक्षसीवशमापन्ना व्याघ्रीणां हरिणी यथा॥ ३४॥
 
 
अनुवाद
 
  मिथिला की राजकुमारी जानकी जब लंका पहुँची तो वे शोक से व्याकुल हो गईं। राक्षसियों के वश में पड़ने के कारण उनकी दशा ऐसी हो गई थी मानो वह बाघिनों के बीच फंसी एक हिरणी हो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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