श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 56: सीता का श्रीराम के प्रति अपना अनन्य अनुराग दिखाकर रावण को फटकारना तथा रावण की आज्ञा से राक्षसियों का उन्हें अशोकवाटिका में ले जाकर डराना  »  श्लोक 31
 
 
श्लोक  3.56.31 
 
 
तत्रैनां तर्जनैर्घोरै: पुन: सान्त्वैश्च मैथिलीम्।
आनयध्वं वशं सर्वा वन्यां गजवधूमिव॥ ३१॥
 
 
अनुवाद
 
  उस मिथिलेशकुमारी को पहले भयंकर गरजना-तड़पना करके डराओ; फिर मीठे-मीठे बोलों से समझा-बुझाकर उसको वश में करने की कोशिश करो, जैसे जंगल की हथिनी को वश में किया जाता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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