श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 56: सीता का श्रीराम के प्रति अपना अनन्य अनुराग दिखाकर रावण को फटकारना तथा रावण की आज्ञा से राक्षसियों का उन्हें अशोकवाटिका में ले जाकर डराना  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  3.56.27 
 
 
शीघ्रमेव हि राक्षस्यो विरूपा घोरदर्शना:।
दर्पमस्यापनेष्यन्तु मांसशोणितभोजना:॥ २७॥
 
 
अनुवाद
 
   शीघ्र ही भयावह विरूप राक्षसियो! तुम सभी काली के प्रकोप की तरह स्वयं को वीभत्स रूप में प्रकट करो और शीघ्र ही इस सीता के अहंकार को दूर कर दो। ऐसा करो कि यह अकेले ही घुटनों पर आ जाए और हमें प्रणाम करे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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