श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 56: सीता का श्रीराम के प्रति अपना अनन्य अनुराग दिखाकर रावण को फटकारना तथा रावण की आज्ञा से राक्षसियों का उन्हें अशोकवाटिका में ले जाकर डराना  »  श्लोक 24-25
 
 
श्लोक  3.56.24-25 
 
 
शृणु मैथिलि मद्वाक्यं मासान् द्वादश भामिनि॥ २४॥
कालेनानेन नाभ्येषि यदि मां चारुहासिनि।
ततस्त्वां प्रातराशार्थं सूदाश्छेत्स्यन्ति लेशश:॥ २५॥
 
 
अनुवाद
 
  "मनोहर हास्य वाली सुन्दरी! मिथिला की राजकुमारी! मेरी बात ध्यान से सुनो। मैं तुम्हें बारह महीने का समय देता हूँ। इस अवधि के भीतर यदि तुम स्वेच्छा से मेरे पास नहीं आती हो, तो मेरे रसोइये सुबह का भोजन तैयार करने के लिए तुम्हारे शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर देंगे।"
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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