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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 3: अरण्य काण्ड
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सर्ग 56: सीता का श्रीराम के प्रति अपना अनन्य अनुराग दिखाकर रावण को फटकारना तथा रावण की आज्ञा से राक्षसियों का उन्हें अशोकवाटिका में ले जाकर डराना
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श्लोक 21
श्लोक
3.56.21
इदं शरीरं नि:संज्ञं बन्ध वा घातयस्व वा।
नेदं शरीरं रक्ष्यं मे जीवितं वापि राक्षस॥ २१॥
अनुवाद
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‘राक्षस! तू इस संज्ञाशून्य जड शरीरको बाँधकर रख ले या काट डाल। मैं स्वयं ही इस शरीर और जीवनको नहीं रखना चाहती॥ २१॥
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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