श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 56: सीता का श्रीराम के प्रति अपना अनन्य अनुराग दिखाकर रावण को फटकारना तथा रावण की आज्ञा से राक्षसियों का उन्हें अशोकवाटिका में ले जाकर डराना  »  श्लोक 19
 
 
श्लोक  3.56.19 
 
 
तथाहं धर्मनित्यस्य धर्मपत्नी दृढव्रता।
त्वया स्प्रष्टुं न शक्याहं राक्षसाधम पापिना॥ १९॥
 
 
अनुवाद
 
  तुलसीदास जी के अनुसार माता सीता ने कहा है कि "मैं भगवान श्री राम की पतिव्रता पत्नी हूँ और दृढ़ता से पतिव्रता धर्म का पालन करती हूँ। मैं यज्ञवेदी के समान पवित्र हूँ। तू राक्षसों के अधम कुल का है और महापापी है। तू चाण्डाल के समान है, इसलिए मेरा स्पर्श नहीं कर सकता।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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