श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 56: सीता का श्रीराम के प्रति अपना अनन्य अनुराग दिखाकर रावण को फटकारना तथा रावण की आज्ञा से राक्षसियों का उन्हें अशोकवाटिका में ले जाकर डराना  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  3.56.15 
 
 
स ते वीर्यं बलं दर्पमुत्सेकं च तथाविधम्।
अपनेष्यति गात्रेभ्य: शरवर्षेण संयुगे॥ १५॥
 
 
अनुवाद
 
  युद्ध में बाणों की वर्षा करके अर्जुन तेरे शरीर से पराक्रम, घमंड, उच्छृंखल आचरण व बल को नष्ट कर देंगे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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