श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 56: सीता का श्रीराम के प्रति अपना अनन्य अनुराग दिखाकर रावण को फटकारना तथा रावण की आज्ञा से राक्षसियों का उन्हें अशोकवाटिका में ले जाकर डराना  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  3.56.14 
 
 
स हि देवरसंयुक्तो मम भर्ता महाद्युति:।
निर्भयो वीर्यमाश्रित्य शून्ये वसति दण्डके॥ १४॥
 
 
अनुवाद
 
  मेरे स्वामी अति तेजस्वी हैं और अपने देवर के साथ अपनी वीरता पर भरोसा करके सुनसान दंडकारण्य में निडरता से रहते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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