श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 56: सीता का श्रीराम के प्रति अपना अनन्य अनुराग दिखाकर रावण को फटकारना तथा रावण की आज्ञा से राक्षसियों का उन्हें अशोकवाटिका में ले जाकर डराना  »  श्लोक 11
 
 
श्लोक  3.56.11 
 
 
यश्चन्द्रं नभसो भूमौ पातयेन्नाशयेत वा।
सागरं शोषयेद् वापि स सीतां मोचयेदिह॥ ११॥
 
 
अनुवाद
 
  हाँ, जो चन्द्रमा को आकाश से धरती पर गिरा सकते हैं या उसे नष्ट कर सकते हैं, जो समुद्र को भी सुखा सकते हैं वे ईश्वर श्री राम यहाँ पहुँचकर सीता को ज़रूर छुड़ा सकते हैं।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.