श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 56: सीता का श्रीराम के प्रति अपना अनन्य अनुराग दिखाकर रावण को फटकारना तथा रावण की आज्ञा से राक्षसियों का उन्हें अशोकवाटिका में ले जाकर डराना  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  3.56.10 
 
 
यदि पश्येत् स रामस्त्वां रोषदीप्तेन चक्षुषा।
रक्षस्त्वमद्य निर्दग्धो यथा रुद्रेण मन्मथ:॥ १०॥
 
 
अनुवाद
 
  यदि श्रीरामचन्द्रजी क्रोध से भरी दृष्टि से तुझे देखेंगे तो तू उसी तरह जलकर राख हो जाएगा जैसे भगवान शंकर ने कामदेव को जलाकर भस्म कर दिया था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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