श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 55: रावण का सीता को अपने अन्तःपुर का दर्शन कराना और अपनी भार्या बन जाने के लिये समझाना  »  श्लोक 5-6
 
 
श्लोक  3.55.5-6 
 
 
अधोगतमुखीं सीतां तामभ्येत्य निशाचर:॥ ५॥
तां तु शोकवशाद् दीनामवशां राक्षसाधिप:।
सबलाद् दर्शयामास गृहं देवगृहोपमम्॥ ६॥
 
 
अनुवाद
 
  देवों के समान भव्य भवन के सदृश्य उस सुन्दर भवन में दुखी और मजबूर सीता को जबरन ले जाकर, जिस सीता के मुख से शोक के कारण अधोमुख हो रखा था, उसको निशाचरों का राजा रावण ले गया और उसने सीता को उस भवन में जबरदस्ती दिखाया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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