श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 55: रावण का सीता को अपने अन्तःपुर का दर्शन कराना और अपनी भार्या बन जाने के लिये समझाना  »  श्लोक 36-37h
 
 
श्लोक  3.55.36-37h 
 
 
इमा: शून्या मया वाच: शुष्यमाणेन भाषिता:॥ ३६॥
न चापि रावण: कांचिन्मूर्ध्ना स्त्रीं प्रणमेत ह।
 
 
अनुवाद
 
  मैंने काम की आग से जलकर ये बातें कहीं हैं। मेरे ये शब्द व्यर्थ न जाएं, कृपया ऐसी दया करो। रावण किसी स्त्री के आगे झुककर नमन नहीं करता, लेकिन सिर्फ तुमको नमन करता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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