वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 3: अरण्य काण्ड
»
सर्ग 55: रावण का सीता को अपने अन्तःपुर का दर्शन कराना और अपनी भार्या बन जाने के लिये समझाना
»
श्लोक 33-34h
श्लोक
3.55.33-34h
ध्यायन्तीं तामिवास्वस्थां सीतां चिन्ताहतप्रभाम्॥ ३३॥
उवाच वचनं वीरो रावणो रजनीचर:।
अनुवाद
play_arrowpause
निशाचरों का वीर रावण चिंता से व्यथित और अपनी कांति खो चुकी सीता को ध्यानमग्न देखकर बोला—।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.