श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 55: रावण का सीता को अपने अन्तःपुर का दर्शन कराना और अपनी भार्या बन जाने के लिये समझाना  »  श्लोक 33-34h
 
 
श्लोक  3.55.33-34h 
 
 
ध्यायन्तीं तामिवास्वस्थां सीतां चिन्ताहतप्रभाम्॥ ३३॥
उवाच वचनं वीरो रावणो रजनीचर:।
 
 
अनुवाद
 
  निशाचरों का वीर रावण चिंता से व्यथित और अपनी कांति खो चुकी सीता को ध्यानमग्न देखकर बोला—।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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