श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 55: रावण का सीता को अपने अन्तःपुर का दर्शन कराना और अपनी भार्या बन जाने के लिये समझाना  »  श्लोक 32-33h
 
 
श्लोक  3.55.32-33h 
 
 
एवं वदति तस्मिन् सा वस्त्रान्तेन वराङ्गना॥ ३२॥
पिधायेन्दुनिभं सीता मन्दमश्रूण्यवर्तयत्।
 
 
अनुवाद
 
  जब रावण ने ये बातें कहीं, तब परमसुन्दरी सीता देवी ने अपने वस्त्र के आँचल से अपने चंद्रमा के समान मनोहर मुख को ढक लिया और सावधानी से आँसू बहाने लगीं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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