श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 55: रावण का सीता को अपने अन्तःपुर का दर्शन कराना और अपनी भार्या बन जाने के लिये समझाना  »  श्लोक 31-32h
 
 
श्लोक  3.55.31-32h 
 
 
वदनं पद्मसंकाशं विमलं चारुदर्शनम्॥ ३१॥
शोकार्तं तु वरारोहे न भ्राजति वरानने।
 
 
अनुवाद
 
  वरारोहे! सुमुखि! तुम्हारा कमल के समान सुंदर, निर्मल और मनोहर दिखायी देने वाला मुख शोक से पीड़ित होने के कारण अपनी शोभा नहीं दिखा पा रहा है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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