श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 55: रावण का सीता को अपने अन्तःपुर का दर्शन कराना और अपनी भार्या बन जाने के लिये समझाना  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  3.55.25 
 
 
त्रयाणामपि लोकानां न तं पश्यामि शोभने।
विक्रमेण नयेद् यस्त्वां मद‍्बाहुपरिपालिताम्॥ २५॥
 
 
अनुवाद
 
  ‘शोभने! इस सृष्टि के तीनों लोकों में मैं किसी ऐसे वीर को नहीं देख पा रहा हूँ जो मेरी भुजाओं द्वारा तुम्हारी रक्षा करते हुए तुमको पराक्रम करके यहाँ से ले जा सके।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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