श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 55: रावण का सीता को अपने अन्तःपुर का दर्शन कराना और अपनी भार्या बन जाने के लिये समझाना  »  श्लोक 23
 
 
श्लोक  3.55.23 
 
 
दर्शने मा कृथा बुद्धिं राघवस्य वरानने।
कास्य शक्तिरिहागन्तुमपि सीते मनोरथै:॥ २३॥
 
 
अनुवाद
 
  वरानने सीते! अब तुम राम के दर्शन का मनसा भी तज दो। क्योंकि, इस राम में इतनी सामर्थ्य ही नहीं कि वह यहाँ आने का विचार भी कर सके।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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