श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 55: रावण का सीता को अपने अन्तःपुर का दर्शन कराना और अपनी भार्या बन जाने के लिये समझाना  »  श्लोक 22
 
 
श्लोक  3.55.22 
 
 
भजस्व सीते मामेव भर्ताहं सदृशस्तव।
यौवनं त्वध्रुवं भीरु रमस्वेह मया सह॥ २२॥
 
 
अनुवाद
 
  सीते! तुम मुझे अपना पति मान लो, क्योंकि मैं तुम्हारे लिए उपयुक्त हूँ। हे भयभीत सीते! यौवन सदा नहीं रहता है, अतः यहीं रहकर मेरे साथ विहार करो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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