वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 3: अरण्य काण्ड
»
सर्ग 55: रावण का सीता को अपने अन्तःपुर का दर्शन कराना और अपनी भार्या बन जाने के लिये समझाना
»
श्लोक 17
श्लोक
3.55.17
बह्वीनामुत्तमस्त्रीणां मम योऽसौ परिग्रह:।
तासां त्वमीश्वरी सीते मम भार्या भव प्रिये॥ १७॥
अनुवाद
play_arrowpause
सीते! मेरे महल में बहुत सी सुंदर पत्नियाँ हैं, तुम उनकी स्वामिनी बन जाओ—प्रिये! मेरी पत्नी बन जाओ।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.