श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 55: रावण का सीता को अपने अन्तःपुर का दर्शन कराना और अपनी भार्या बन जाने के लिये समझाना  »  श्लोक 16
 
 
श्लोक  3.55.16 
 
 
यदिदं राज्यतन्त्रं मे त्वयि सर्वं प्रतिष्ठितम्।
जीवितं च विशालाक्षि त्वं मे प्राणैर्गरीयसी॥ १६॥
 
 
अनुवाद
 
  विशालाक्षि! मेरे इस राज्य और जीवन तुम पर ही निर्भर हैं (अर्थात ये सब कुछ तुम्हारे चरणों में समर्पित है)। तुम मेरे प्राणों से भी अधिक प्रिय हो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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