श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 55: रावण का सीता को अपने अन्तःपुर का दर्शन कराना और अपनी भार्या बन जाने के लिये समझाना  »  श्लोक 14-15
 
 
श्लोक  3.55.14-15 
 
 
दश राक्षसकोटॺश्च द्वाविंशतिरथापरा:।
वर्जयित्वा जरावृद्धान् बालांश्च रजनीचरान्॥ १४॥
तेषां प्रभुरहं सीते सर्वेषां भीमकर्मणाम्।
सहस्रमेकमेकस्य मम कार्यपुर:सरम्॥ १५॥
 
 
अनुवाद
 
  सीते! मेरे अधीन बत्तीस करोड़ राक्षस हैं। यह संख्या उन बूढ़े और बच्चे राक्षसों के अलावा है। इन सारे भयंकर कर्म करने वाले राक्षसों का मैं ही स्वामी हूँ। अकेले मुझे एक हजार राक्षस सेवा में रहते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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