श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 55: रावण का सीता को अपने अन्तःपुर का दर्शन कराना और अपनी भार्या बन जाने के लिये समझाना  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  3.55.10 
 
 
दान्तका राजताश्चैव गवाक्षा: प्रियदर्शना:।
हेमजालावृताश्चासंस्तत्र प्रासादपङ्‍क्तय:॥ १०॥
 
 
अनुवाद
 
  हाथीदाँत और चाँदी से निर्मित खिड़कियाँ थीं जो देखने में बहुत सुखद थीं। सोने की जालियों से ढकी हुई महलों की पंक्तियाँ भी देखी जा सकती थीं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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