श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 55: रावण का सीता को अपने अन्तःपुर का दर्शन कराना और अपनी भार्या बन जाने के लिये समझाना  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  3.55.1 
 
 
संदिश्य राक्षसान् घोरान् रावणोऽष्टौ महाबलान्।
आत्मानं बुद्धिवैक्लव्यात् कृत्कृत्यममन्यत॥ १॥
 
 
अनुवाद
 
  रावण ने अपने विपरीत बुद्धि के कारण इन आठ शक्तिशाली और भयानक राक्षसों को जनस्थान में जाने का आदेश दिया और स्वयं को कृतार्थ मान लिया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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