श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 54: सीता का पाँच वानरों के बीच अपने भूषण और वस्त्र को गिराना, रावण का सीता को अन्तःपुर में रखना  »  श्लोक 4-5h
 
 
श्लोक  3.54.4-5h 
 
 
सम्भ्रमात् तु दशग्रीवस्तत्कर्म च न बुद्धवान्।
पिङ्गाक्षास्तां विशालाक्षीं नेत्रैरनिमिषैरिव॥ ४॥
विक्रोशन्तीं तदा सीतां ददृशुर्वानरोत्तमा:।
 
 
अनुवाद
 
  रावण बहुत घबराया हुआ था, इसीलिए उसने सीता के इस कार्य को समझ नहीं पाया। उन लाल-पीली आँखों वाले श्रेष्ठ वानर उस समय ऊँची आवाज़ में विलाप करनेवाली बड़ी-बड़ी आँखों वाली सीता की ओर टिमटिमाते हुए आँखों से निहारने लगे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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