श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 54: सीता का पाँच वानरों के बीच अपने भूषण और वस्त्र को गिराना, रावण का सीता को अन्तःपुर में रखना  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  3.54.30 
 
 
ततस्तु सीतामुपलभ्य रावण:
सुसम्प्रहृष्ट: परिगृह्य मैथिलीम्।
प्रसज्य रामेण च वैरमुत्तमं
बभूव मोहान्मुदित: स रावण:॥ ३०॥
 
 
अनुवाद
 
  तत्पश्चात रावण सीता को प्राप्त करके अत्यधिक हर्षित हुआ और मिथिला नरेश की कन्या सीता को राक्षसियों को सौंप दिया। श्रीराम से घोर वैर करने का संकल्प लेकर मोहवश आनन्दित होने लगा।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽरण्यकाण्डे चतुष्पञ्चाश: सर्ग: ॥ ५ ४॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अरण्यकाण्डमें चौवनवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ ५ ४॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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