श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 54: सीता का पाँच वानरों के बीच अपने भूषण और वस्त्र को गिराना, रावण का सीता को अन्तःपुर में रखना  »  श्लोक 29
 
 
श्लोक  3.54.29 
 
 
तत: प्रियं वाक्यमुपेत्य राक्षसा
महार्थमष्टावभिवाद्य रावणम्।
विहाय लङ्कां सहिता: प्रतस्थिरे
यतो जनस्थानमलक्ष्यदर्शना:॥ २९॥
 
 
अनुवाद
 
  रावण के इन स्वाभिमानी शब्दों को सुनकर आठों राक्षसों ने उन्हें प्रणाम किया और तुरंत ही अदृश्य हो गए। वे सभी लंका छोड़कर एक साथ अपनी जन्मभूमि की ओर चल पड़े।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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