श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 54: सीता का पाँच वानरों के बीच अपने भूषण और वस्त्र को गिराना, रावण का सीता को अन्तःपुर में रखना  »  श्लोक 24
 
 
श्लोक  3.54.24 
 
 
निर्यातयितुमिच्छामि तच्च वैरं महारिपो:।
नहि लप्स्याम्यहं निद्रामहत्वा संयुगे रिपुम्॥ २४॥
 
 
अनुवाद
 
  ‘मैं अपने महान् शत्रुसे उस वैरका बदला लेना चाहता हूँ। उस शत्रुको संग्राममें मारे बिना मैं चैनसे सो नहीं सकूँगा॥ २४॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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