श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 54: सीता का पाँच वानरों के बीच अपने भूषण और वस्त्र को गिराना, रावण का सीता को अन्तःपुर में रखना  »  श्लोक 17-18
 
 
श्लोक  3.54.17-18 
 
 
तथोक्त्वा राक्षसीस्तास्तु राक्षसेन्द्र: प्रतापवान्॥ १७॥
निष्क्रम्यान्त:पुरात् तस्मात् किं कृत्यमिति चिन्तयन्।
ददर्शाष्टौ महावीर्यान् राक्षसान् पिशिताशनान्॥ १८॥
 
 
अनुवाद
 
  राक्षसराज ने राक्षसियों को उचित आज्ञा देकर महल से बाहर कदम रखा। उसे विचार करने लगा कि अब क्या करना चाहिए। तभी उसने आठ महाशक्तिशाली राक्षसों को देखा, जो कच्चा मांस खाते थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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