श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 54: सीता का पाँच वानरों के बीच अपने भूषण और वस्त्र को गिराना, रावण का सीता को अन्तःपुर में रखना  »  श्लोक 13-14h
 
 
श्लोक  3.54.13-14h 
 
 
तत्र तामसितापाङ्गीं शोकमोहसमन्विताम् ॥ १ ३॥
निदधे रावण: सीतां मयो मायामिवासुरीम्।
 
 
अनुवाद
 
  कजरारे नेत्रों वाली सीता शोक और मोह में डूबी हुई थीं। रावण ने उन्हें अपने अन्तःपुर में रख दिया, मानो मयासुर ने आसुरी माया को वहाँ स्थापित कर दिया हो। रावण ने सीता को अपने अन्तःपुर में रखा, जैसे मयासुर ने आसुरी माया को स्थापित किया था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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