श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 53: सीता का रावण को धिक्कारना  »  श्लोक 6-7
 
 
श्लोक  3.53.6-7 
 
 
परमं खलु ते वीर्यं दृश्यते राक्षसाधम।
विश्राव्य नामधेयं हि युद्धे नास्मि जिता त्वया॥ ६॥
ईदृशं गर्हितं कर्म कथं कृत्वा न लज्जसे।
स्त्रियाश्चाहरणं नीच रहिते च परस्य च॥ ७॥
 
 
अनुवाद
 
  निश्चय ही हे नीच राक्षस, तेरा बाहुबल अत्यंत प्रबल है (क्योंकि तू वृद्ध जटायु को भी मार गिराया!), तूने अपना नाम बताकर श्रीरामलक्ष्मण के साथ युद्ध करके मुझे नहीं जीता है। हे अधम! जहाँ कोई रक्षक न हो—ऐसे स्थान पर जाकर परायी स्त्री का हरण करना जैसा निंदनीय कर्म करके तुझे लज्जा नहीं आती?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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