वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 3: अरण्य काण्ड
»
सर्ग 53: सीता का रावण को धिक्कारना
»
श्लोक 5
श्लोक
3.53.5
यो हि मामुद्यतस्त्रातुं सोऽप्ययं विनिपातित:।
गृध्रराज: पुराणोऽसौ श्वशुरस्य सखा मम॥ ५॥
अनुवाद
play_arrowpause
मेरे श्वशुर के मित्र वनराज गिद्धराज जटायु, जो मेरी रक्षा करने के लिए आगे आए थे, उन्हें भी तूने मार डाला।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.