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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 3: अरण्य काण्ड
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सर्ग 53: सीता का रावण को धिक्कारना
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श्लोक 4
श्लोक
3.53.4
त्वयैव नूनं दुष्टात्मन् भीरुणा हर्तुमिच्छता।
ममापवाहितो भर्ता मृगरूपेण मायया॥ ४॥
अनुवाद
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‘दुष्टात्मन्! तू बड़ा कायर और डरपोक है। निश्चय ही मुझे हर ले जानेकी इच्छासे तूने ही मायाद्वारा मृगरूपमें उपस्थित हो मेरे स्वामीको आश्रमसे दूर हटा दिया था॥
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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